दर्दनाक अंत
इतिहास साक्षी है कि धन और सत्ता के लिए मनुष्य ने मनुष्य का इतना खून बहाया है कि यह अगर इकट्ठा हो तो रक्त का दरिया उमड़ पड़े। धन, राज्य, अधिकार की लिप्सा में अनेक राजाओं ने जिस प्रकार दुनिया को तबाह किया उसे पढ़-सुनकर दिल दहल जाता है, किंतु ऐसे सभी आक्रमणकारियों या विजेताओं का अंत अत्यंत दर्दनाक, दुःख और पश्चात्ताप से पूर्ण था।
दिग्विजयी सिकंदर अनेक देशों को जीत लेने के पश्चात् अपनी युवावस्था में ही मृत्यु-शय्या पर आ पड़ा और अंतिम वेला में उसने अपने साथियों से कहा: "मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरे दोनो हाथ अर्थी से बाहर निकाल देना ताकि दुनिया के लोग यह जान सके कि सिकंदर, जिसके अधिकार में अपार खजाने थे, वह भी आज खाली हाथ जा रहा है।"
याद रख सिकंदर के, हौसले तो आली थे।
जब गया था दुनिया से, दोनों हाथ खाली थे ।।
महमूद गजनवी ने ग्यारहवीं शताब्दी में नगरकोट तथा सोमनाथ के मंदिर को लूटा। इस लूट में उसे अपार सम्पदा मिली। कहते हैं गजनवी ने अपनी मृत्युवेला में अपने सिपाहियों से कहा: "मेरी शय्या उन तिजोरियों के बीच में डाल दो, जिनमें लाल, हीरे, पन्ने आदि मणि-रत्न मौजूद हैं।"
जब उसे उन तिजोरियों के बीच में ले जाया गया तो यह छटपटाकर उठा, तिजोरियों को पकड़कर सीने से चिपटाते हुए फूट-फूटकर रो पड़ा और कराहते हुए बोला "हाय! मैंने इन लाल, भूरे, नीले, पीले, सफेद पत्थरों को इकट्ठा करने में ही जीवन गंवा दिया। लूटपाट, खून-खराबा और धन की हवस में सारी जिंदगी बर्बाद कर दी।"
वह भी रोता, हाथ मलता, पश्चात्ताप की आग में छटपटाता हुआ मरा।
सन् 1398 में तैमूर लंग बानवे हजार सवार लेकर लूटमार करता हुआ जब दिल्ली पहुंचा तब एक लाख हिन्दुओं के सिर कटवाकर उसने वहाँ ईद की नमाज पढ़ी। वह दिल्ली की किसी सड़क पर अपने सिपाहियों के साथ जा रहा था। उसे रास्ते में एक अंधी बुढ़िया मिली। तैमूर ने बुढ़िया से उसका नाम पूछा। बुढ़िया ने यह जानकर कि मेरा नाम पूछनेवाला खूँखार और बेरहम तैमूर है, कड़कते स्वर में अपना नाम 'दौलत' बताया। नाम सुनते ही तैमूर हँसा और बोला "दौलत भी अंधी होती है!" बुढ़िया ने कहा "हाँ! दौलत भी अंधी होती है तभी तो वह लूटमार और खून- खराबे के जरिये लूले और लँगड़े के पास पहुँच जाती है।"
तैमूर बुढ़िया के हृदय विदारक वाक्यों को सुनकर बहुत लज्जित हुआ। उसके चेहरे पर उदासी छा गयी। वह आगे बढ़ा, उसे लगा कि अंधी दौलत के पीछे मैं लँगड़ा ही नहीं अंधा भी हूँ।
सिकंदर हो या कारूँ, गजनवी हो या औरंगजेब, तुगलक हो या सिकंदर लोदी, चंगेज, मुसोलिनी, नेपोलियन, हिटलर या जापान के नागासाकी एवं हिरोशिमा पर बम गिराकर वहाँ की निरपराध जनता और सम्पत्ति को नष्ट करनेवाले अमेरिकी शासक, सद्दाम हो या अन्य कोई भी मानवीय अधिकारों, सुख-सुविधाओं को नष्ट करनेवाले अधिपति, इतिहास के पन्ने ऐसे अनेक अत्याचारियों द्वारा खून-खराबों एवं धन, राज्य, भोगों की लिप्सा के कुकृत्यों से रँगे पड़े हैं। किंतु इन सब युद्धों और लड़ाइयों का परिणाम अत्यंत दुःखजनक ही सिद्ध होता है। अंततः धन-सत्ता का पिपासु विनाश के गर्त में चला जाता है और सम्पूर्ण वैभव यहीं छूट जाता है, फिर भी मनुष्य सावधान नहीं होता !
जो विद्यार्थी-जीवन में सावधान रहते हैं, वे आतंकी नहीं होते, श्रेष्ठ नागरिक, श्रेष्ठ व्यापारी, श्रेष्ठ अधिकारी अथवा श्रेष्ठ महापुरुष बनते हैं। पसंदगी तुम्हारी है !
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