आते न वो परमेश जो,
गुरुदेव के आकार में ।
रहता अंधेरा ही अंधेरा
मोह के संसार में ।।
होते सभी रत भोग में
अपना ही स्वारथ साधते ।
है कौन निष्कामी बना
देता लगा उपकार में ।।
गुरुदेव के चरणारविन्दों
की शरण जब तक न ली।
दिन जिंदगी के किस तरह
कितने गये बेकार में ।।
वे हैं दयालू दीनवत्सल,
राम संशय छोड़ दे ।
तेरा भला हो जायेगा,
तू रह पड़ा दरबार में ।।
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