🌹साधक होने का मतलब है अपनी इच्छाएँ, वासनाएँ, आलस्य - प्रमाद और दुश्चरित्रता का त्याग करके भगवान के लिए अपने अहं को मिटाकर भगवत्प्रीति बढ़ाने हेतु, एक ऊँचा उद्देश्य पाने के लिए पूरे प्रयत्न से लग जाना ।
🌹अगर उद्देश्य ऊँचा बनाया है तो उसमें विकल्प के लिए कोई स्थान नहीं है । हजारों जन्मों का काम एक ही जन्म में करना है, हजारों जन्मों के संस्कार इसी जन्म में मिटाने हैं, हजारों जन्मों की दुष्ट वासनाएँ इसी जन्म में नष्ट करनी हैं ।
🌹साधक को चाहिए कि तत्परता और ईमानदारी से सेवा करे । अगर वह ईमानदारी और सच्चाई से सेवा करेगा तो उसकी सेवा भी साधना बन जायेगी । जो तत्परता से सेवा करता है उसे किसके साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए यह अपने-आप ही आ जाता है । जैसे, अपनी दुकान अथवा घर का काम तत्परता से करते हैं उससे भी ज्यादा सेवा के स्थल पर तत्परता आ जाय तो समझो ईमानदारी की सेवा है ।
🌹नौकरी, काम - धंधे से समय बचाकर सेवा मिल गयी तो सेवा करें, नहीं तो ध्यान, जप करें । अपना समय व्यर्थ न गँवायें ।
🌹भगवान सत्यस्वरूप हैं । जो सच्चाई से जीता है, सच्चाई से सेवा करता है और सच्चाई से ध्यान-भजन करता है, वही ईश्वर के मार्ग पर दृढ़ता से चल पाता है ।
- पूज्य बापूजी
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